This chapter is about Persian Alphabets. Before going into that, here is one question for you:
In the last chapter, you learnt that all the Persian verbs end with either a tan or a dan, remember? Like Uftan, guftan, kardan, aamadan etc. So, what happends when the verb is a modern concept where a foreign word is required, like rasterization? Think about it! (Answer at the end of the chapter)
Here we talk about the Persian Alphabet, which is based on Arabic alphabet. The letters are "alif, ba, ta" etc.. Mind you that the Engllish word "Alphabet" is made using the first two letters of Greek writings, and those are "Alpha and Beta", very similar to Alif, Ba here. While, in Hebrew, these two letters are exactly "aleph and Bet"! If you already know Urdu script, instead of wasting your time on this lesson. you may watch a latest bollywood song on youtube, or a Jaspal Bhatti episode, if you like ! :-)
Here we go!
अध्याय ३
वर्णमाला
फारसी की वर्णमाला में ३२ अक्षर हैं जो अरबी की लिपि पर आधारित हैं । यानि अरबी अक्षरों में कुछ और अक्षर जोड़कर इनको बनाया गया है । कोई अक्षर अगर शब्द के बीच में आता है तो आधा ही लिखा जाता है, लेकिन अगर शब्द के अन्त में हो तो पूरा लिखा जाता है । इनका विवरण और उच्चारण नीचे दिया गया है-
ا - अलिफ़ - ये पहला अक्षर है । इससे अ का उच्चारण होता है । वाक्य के अन्त में आने से इसका रूप नहीं बदलता है ।
آ - आ का उच्चारण ।
ب - बे (अरबी में बा) - ब का उच्चारण होता है । शब्द बीच में आने पर बाएँ से आधा काट दिया जाता है, नुक़्ता बरक़रार रहता है ।
ت - ते (अरबी में ता) - त का उच्चारण । शब्द के बीच में आने पर नुक़्ता बरक़रार रहता है और आधार की तश्तरी आधी हो जाती है ।
پ - पे (प का उच्चारण) - यह अक्षर अरबी में नहीं होता । फा़रसी और उर्दू में बहुत प्रयुक्त होता है । एक ग़ौरतलब बात ये है कि, अरबी में ‘प’ नहीं होने के कारण ही, दक्षिण ईरान के पार्स शहर - जहाँ से ईसा के ५५० साल पहले ईरानी साम्राज्य का उदय हुआ था - को अरबी में फ़ार्स (या फ़ारस) कहने लगे । इसी के नाम पर पारसी भाषा का नाम फ़ारसी पड़ा । यूनानी लोग इसे पर्स (या पर्सपोलिस) कहते थे और इसी से अंग्रेजी में इस भाषा को पर्सियन (Persian) कहते हैं ।
आगे वर्णमाला पढ़ने से पहले, मात्राओं का प्रयोग सीखना अधिक उपयुक्त होगा । नीचे की मात्राएं लघु मात्राएँ हैं । अक्सर लिखित और ख़ासकर टंकित लिखाई में इनका प्रयोग ज़रूरी नहीं होता । पढ़ने वाला अनुमान के आधार पर मात्राओं का उच्चारण ख़ुद कर लेता है ।
بَ - बअ - उपर लिखी मात्रा को ज़बर कहते हैं । ज़बर का अर्थ होता है - ऊपर । ज़बरदस्त - जिसका हाथ ऊपर हो, यानि श्रेष्ठ, बेहतर ।
بِ - बे - ब के नीचे लगी मात्रा को ज़ेर कहते हैं । ज़ेर का अर्थ - नीचे । ज़ेरदस्त - हाथ से नीचे, यानि कमज़ोर, ग़रीब, लाचार । ज़ेर से ‘ए’ या ‘ह्रस्व इ’ का उच्चारण आता है । इस को बि भी पढ़ा जा सकता है ।
بُ - बु - ब से ऊपर की मात्रा को पेश कहते हैं । पेश से ‘ह्रस्व उ’ का उच्चारण आता है ।
एक शब्द में जब कई अक्षर होते हैं तो आख़िरी अक्षर को छोड़कर बाकी सभी आधे लिखे जाते हैं । उदाहरण के तौर पर अगर हम बुत (मूर्ति) लिखना चाहें तो इस प्रकार होगा
بُت
इसमें ब आधा हो गया लेकिन त पूरा रहा । ब के ऊपर लगे पेश पर भी ध्यान दें ।
कुछ अक्षर कभी किसी से संयुक्त नहीं होते, चाहे वो शब्द के बीच में ही क्यों ना हों । इनका उल्लेख वर्णमाला की पढ़ाई के बीच में किया जाएगा ।
दीर्घ मात्राओं के लिए वर्णों को ऊपर या नीचे ना लिखकर शब्दों के साथ ही लिखते हैं । जैसे
با - बा - गौर कीजिये कि ये बे और अलिफ़ से मिलकर बना है । ब आधा है और उसके आगे (बाईं ओर) अलिफ़ लगा हुआ है ।
بی - बी - इसमें भी ब आधा है और फिर दीर्घ मात्रा लगाई गई है ।
بو - बू - इसमें ब आधा लिखा है - उच्चारण buu होगा ।
एक बार - "ब" की सारी मात्राएँ
buu
|
bee
|
baa
|
bo/bu
|
be
|
bae
|
b
|
بو
|
بی
|
با
|
بُ
|
بِ
|
بَ
|
ب
|
बो/बू
|
बी/बे
|
बा
|
बु
|
बे
|
बॆ
|
ब
|
उच्चारण के लिए
ध्यान दीजिये के बे और बी की लिखावट एक जैसी है । यह वजह है कि जिसको फ़ारसी में बीचारा कहते हैं, हिन्दी-उर्दू में आते-आते बेचारा हो जाता है । इसी तरह बीक़रार - बेक़रार, बीवजह - बेवजह और अन्य रूप बदलते हैं ।
इसी तरह से बो और बू एक जैसे लिखे जाते हैं ।
Answer to the question posed at the start of this chapter:
The verb's foreign root is preserved, to capture the meaning but a 'kardan' is added. So rasterization will become - rasteri-kardan. Notice that the verb still ends with a 'dan'!
Keep Reading,
Cheers!