Friday, 18 September 2015

Lesson 27 - Command!

Hello!

How do you command/order? "Come Here", "Go there", "Don't eat that" etc? Here we learn!


अध्याय -२७  
अम्र (आदेश)

जाओ, खाओ, आओ - इस प्रकार के वाक्य बनाने के लिए ये तरीका है -


  1. मसदर का मूल लें । यानि रफ़्तन -> रव (رو) या रुइतने से ही अम्र बन जाता है, लेकिन अगर आप चाहें तो उसके पहले ब- लगा सकते हैं, यानि रू -> रु


और उदाहरण -


खा - बख़ुर  بخر (या ख़ुर) । ला - बेयार (بِیار) । आ - बिआ (بِیا)। इत्यादि ।

  • आदरसूचक प्रयोग के लिए आख़िर में एद लगाएं । जाईये - रवेद (ر)।
  • निषेधात्मक आदेश यानि ‘न ला’, ‘न जा’ इत्यादि जैसे संदेशों के लिए शुरु में ‘म’ लगाते हैं । जैसे- मत जा - मरु (مرو)। मत खा - मख़ुर مخُر। इत्यादि ।


ब-ए-ज़ाइद



जैसा कि आपने सीखा, शुरु में लगाने से मानी नहीं बदलता । इस ब को ब-ए-ज़ाइद कहते हैं । लेकिन सिर्फ अम्र बनाने में ही इस ब-ए-ज़ाईद का इस्तेमाल नहीं होता । इसका इसतेमाल किसी और सेग़े (काल) में भी हो सकता है । जैसे - रफ़्त (गया) का बरफ़्त बन सकता है । इससे इसका अर्थ नहीं बदलेगा और के साथ या बिना दोनो ही सूरत में - “गया” का अर्थ आएगा ।


उदाहरण



सो - ख़ुफ़ (ख़ुफ्तन से बना)
मत सो - मख़
इधर आइये - इंज़ा आमदेद (आमदन से बना)
बैठिये -निशसेद (निशस्तन से बना)


अमरे मुदामी
अमर -ए -मुदामी वो सेग़ा है जिसमें आदेश को सतत् होने का रूप दिया जाय, जैसे - “जाता रहा”, “जाया कर” ।
इसके लिए अमर में मी जोड़ देते हैं । जैसे - जाया कर - मीरु । देखा कर - मीबीन ।


हाफ़िज़ का शेर


بده صاقی می باقی که در جنّت نه خاهی یافت
کِنارِ آبِ رُکناباد و گلگشتا مسلا را


बदः साक़ी, मए बाक़ी, के दर जन्नत न ख़ाही याफ़्त
केनारे आबे रुक्नाबाद व गुलगश्ते मुसल्ला रॉ । ३.३।


बदः - दो (दादन से बना) । ख़ाही य़ाफ़्त - मिलेगा (याफ़्तन से बना) ।


अर्थ - साक़ी, बाक़ी की शराब दो, कि जन्नत में नहीं मिलेगी [ये सब]; रुक्नाबाद के पानी का किनारा और मुसल्लः के बाग़ की सैर ।  


पूरी ग़ज़ल यहाँ पढ़ें - http://ganjoor.net/hafez/ghazal/sh3/


अंग्रेज़ी अनुवाग के साथ यहाँ देखें http://www.hafizonlove.com/divan/01/003.htm
(इस ग़ज़ल के शुरुआती शेर (मतले) में हिन्दू शब्द आया है । ऐतिहासिक रूप से ये महत्वपूर्ण हो सकता है ।)


रूमी
پارسی گو اگرچه تازی خوشتر است
اِشق را سدها زبانِ دیگر است


पारसी गो, अगर्चेः ताज़ी ख़ुशतर अस्त ।
इश्क़ रा सदहा ज़बाने दीगर अस्त ।


गो - बोलो । सदहा- सैकड़ों । दीगर - दूसरे, अन्य ।
अर्थ - फ़ारसी बोलो, भले ही अरबी ख़ुशतर है; इश्क़ की वैसे भी सैकड़ों और भी ज़बाने हैं । (ये शेर उन्होंने तुर्क सुन्नी शासन के दौरान सन् १२६० दशक के आसपास लिखीं थी )


अभ्यास
यहाँ आओ । वहाँ जाओ । तुम्हारा नाम क्या है ? यहाँ किस लिए आए ? मेरी बात सुनो । तुम्हारा घर कहाँ है ? ये क्या  है? हाथ में क्या है ?   


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